त्रिफला एक अमृत औषधि
परिचय :
गुण :
त्रिफला प्रमेह (वीर्य विकार), कफ, पित्त तथा कुष्ठ को ठीक करता है। यह दस्त लाकर पेट को साफ करने वाला होता है। आंखों के रोग को ठीक करने में यह लाभकारी होता है। यह भूख, रुचि को बढ़ाने वाला और विषम बुखार को नष्ट करने वाला होता है।
त्रिफला से कायाकल्प
त्रिफला के चूर्ण का विधिवत सेवन अमृत तुल्य है और कायाकल्प करने में समर्थ है .यह वात पित्त कफ –त्रिदोषनाशक व रसायन है .
निर्माण विधि :- हरड (पीली ) ,बहेड़ा ,आवला –तीनो फलों (स्वस्थ्य एवम बिना कीड़े लगे हुए ) की गुठली निकालने के बाद छिलकों को कूट पीसकर कपडछान करके तीनों का अलग अलग चूर्ण बना ले और फिर १:२:३ के अनुपात में मिलाकर रख ले जैसे यदि हरडे का चूर्ण १० ग्राम हो तो बहेड़े का चूर्ण २० ग्राम और आवलों का चूर्ण ३० ग्राम लेकर मिलाना चाहिए और इस मिश्रण को किसी शीशी में कार्क लगाकर बरसाती हवा से बचाते हुए रखना चाहिए .सदैव निरोग रहने और कायाकल्प के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए के वे त्रिफला चूर्ण बाजार से कभी नहीं खरीदे बल्कि उपरोक्त विधि से बनाया गया त्रिफला ४ महीने तक एक साथ बनाकर उपयोग कर सकते है. ४ महीने बाद चूर्ण उतना प्रभावी नहीं रहता .पूर्ण कायाकल्प के लिए त्रिफला चूर्ण को १२ वर्ष तक लेने का विधान है .
सेवन विधि :- प्रातः मूह हाथ धोने और कुल्ला करने के बाद खाली पेट त्रिफला चूर्ण ताजा पानी के साथ केवल एक बार ले .मात्रा-बच्चे हो या व्यस्क जितने साल उसकी आयु हो उसे उतनी रत्ती (रत्ती अर्थात दो ग्रेन ) चूर्ण लेना चाहिए .जितने वर्ष उतने रत्ती –जैसे यदि आप ३२ वर्ष के हो तो आपको ३२ रत्ती (या ६४ ग्रेन या ४ ग्राम ) चूर्ण ताजा पानी के साथ लेना चाहिए त्रिफला सेवन के पश्चात एक घंटे तक दूश या नाश्ता न ले .दूसरे शब्दों में औषधि लेने के एक घंटे बाद तक पानी के अलावा और कुछ न ले .इस नियम का कठोरता से पालें करना आवश्यक है .त्रिफला सेवन काल में एक दो पतला पखाना भी आ सकता है .इस बात का भी ध्यान रखे.
भिन्न भिन्न ऋतुओं में अनुपान :- हमारे यहाँ साल में ६ ऋतुए होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास .बसंत ऋतू में त्रिफला चूर्ण में सहाद मिलाये जिससे चाटने योग्य अवलेह बन जाए तब सेवन करे .जो लोग शहद नहीं खाते वे शहद के स्थान पर त्रिफला चूर्ण में २-३ चम्मच बूरा या पीसी हुई चीनी मिलाकर ले सकते है .बाकी ऋतुओं में मौसम के अनुसार अलग अलग वस्तु जैसे ग्रीष्म में गुड ,वेर्षा में सैंधा नमक,शरद में देशी खांड,हेमंत में सौंठ का चूर्ण ,शिशिर में पीपल (लैंडी) के चूर्ण को निम्नलिखित अनुपात में त्रिफला चूर्ण में मिलाकर ताजे पानी के साथ प्रतिदिन एक बार ले .
१ ज्येष्ठ तथा आषाढ़ ( ग्रीष्म ऋतू ) १५ मई से 13 जुलाई तक का समय :- त्रिफला गुड के साथ लेना चाहिए .त्रिफला एक भाग तो गुड उसका चौथाई भाग.
२ सावन तथा भादौ ( वेर्षा ऋतू ) १४ जुलाई से 13 सितम्बर तक का समय :- त्रिफला सैंधा नमक के साथ लेना चाहिए .त्रिफला एक भाग तो सैंधा नमक उसका आठवा भाग .
३ आश्विन (कुवार ) तथा कार्तिक (शरद ऋतू ) १४ सितम्बर से 13 नवम्बर तक का समय :- त्रिफला देशी खांड के साथ लेना चाहिए .त्रिफला एक भाग तो सधी खांड उसका छठा भाग .
४ मिगसर (अगहन ) तथा पोष ( हेमंत ऋतू ) १४ नवम्बर से 13 जनवरी तक का समय :- त्रिफला सौंठ के चूर्ण के साथ लेना चाहिए .त्रिफला एक भाग तो सौंठ चूर्ण उसका छठा भाग .
5 माघ तथा फागुन (शिशिर ऋतू ) १४ जनवरी से 13 मार्च तक का समय :- त्रिफला को छोटी पीपली के चूर्ण के साथ लेना चाहिए .त्रिफला एक भाग तो छोटी पीपली का चूर्ण उसका आठवा भाग .
६ चैत्र तथा बैशाख (बसंत ऋतू ) १४ मार्च से 13 मई तक का समय :- त्रिफला चूर्ण को इतने शहद के साथ मिलाना चाहिए के उसे चाटा जा सके .
यदि त्रिफला चूर्ण को उपरोक्त तरीके से लगातार १२ वर्ष तक सेवन किया जाए तो निम्न फायदे होंगे :-
एक वर्ष तक सेवन करने से सुस्ती दूर भाग जाती है .
२ वर्ष तक सेवन करने से सभी रोगों का नाश होता है .
३ वर्ष तक सेवन करने से नेत्र ज्योति बढाती है .
४ वर्ष तक सेवन करने से चहरे पर अपूर्व सौंदर्य की प्राप्ति होती है
५ वर्ष तक सेवन करने से बुद्धि का खूब विकास होता है .
६ वर्ष तक सेवन करने से बल की अपीरिमित वृधि होती है .
७ वर्ष तक सेवन करने से सफ़ेद बाल पुनः काले हो जाते है .
८ वर्ष तक सेवन करने से वृद्ध व्यक्ति पुनः युवा बन जाता है
९ वर्ष तक सेवन करने से दिन में तारे स्पस्ट दिखने लगते है .
१० वर्ष तक सेवन करने से कंठ में सरस्वती का वास हो जाता है और ह्रदय में दिव्य प्रकाश की अनुभूति होती है .
११ वर्ष तक सेवन करने से वचन सिद्धि की प्राप्ति होती है अर्थात सेवन करने वाला व्यक्ति इतना सामर्थ्यवान हो जाता है के जो भी वचन बोले खाली नहीं जाता बल्कि सत्य सिद्ध होता है .
इसी बात को कविता के रूप में इस प्रकार कही गयी है :-
निर्माण विधि :- दो तोला हर्ड बड़ी मंगावे तासू दुगुन बहेड़ा लावे
और चतुर्गुण मेरे मीता ले आवला परम पुनीता
कूट छान या विधि से खाय ताके रोग सर्व मिट जाय .
भिन्न भिन्न ऋतुओं में सेवन विधि :-
सावन भादौं सैंधा नमक कार्तिक कुवार खांड सू फाक
अगहन पूस सौंठ के साथ पीपल माघ फागुन विख्यात
शहदे चेत वैशाख बतायो जेठ असाढ़ गुदा सू खायो
मात्रा :-
आयुष्य के वर्ष प्रमाण खाय तौल रत्तीन सू
ठीक यही अनुमान जितने वर्ष उतनी रत्ती
लाभ :- प्रथम वर्ष तन सुस्ती जाय द्वितीय रोग सर्व मिट जाय
तृतीय नैन बहु ज्योति समाय चौथे सुन्दरताई आवे
पंचम वर्ष बुद्धि अधिकाई षष्टम महाबली हो जाई
केश स्वेत श्याम होय सप्तम वृद्ध तन तरुण होई पुनि अष्टम
दिन में तारे दीखे सही नवं वर्ष फल अस्तुति कही
दसम सारदा कंठ बिराजे अन्धकार हिरदै का भाजे
जो एकादश द्वादश खाय ताको वचन सिद्ध हो जाय
उपरोक्त गिनाये गए लाभ भले ही आज अतिशयोक्तिपूर्ण लगे परन्तु इतना जरूर है कि वास्तविक लाभ कायाकल्प के सम्कक्ष्य होता है .अर्थात शरीर में कैसी भी बीमारी हो वह स्थायी रूप से ठीक हो जाती है .
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. आंखों के रोग :-
· त्रिफला को शाम को पानी में डालकर भिगो दें। सुबह उठकर इसे छान लें तथा इससे आंखों धोएं इससे हर प्रकार की आंखों की बीमारियां ठीक हो जाती है। त्रिफला के चूर्ण को कुछ घंटे तक पानी में भिगोकर, छानकर उसका पानी पीने से भी गैस की शिकायत नहीं रहती हैं।
· त्रिफला के पानी से आंखों को धोने से आंखों के अंदर की सूजन दूर हो जाती है।
· लगभग 5 से 10 ग्राम महात्रिफला तथा मिश्री को घी में मिलाकर सेवन करने से आंखों का दर्द, आंखों का लाल होना या आंखों की सूजन आदि दूर होते है।
· 4 चम्मच त्रिफला का चूर्ण 1 गिलास पानी में मिलाकर अच्छी तरह से छान लें। इस पानी से आंखों पर छीटे मारकर दिन में 4 बार धोएं। इससे लाभ मिलता है और आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।
· त्रिफला के काढ़े की कुछ बूंदे आंखों में डालने से हर प्रकार के आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।
· .त्रिफला के पानी से रोजाना 2 से 3 बार आंखों को धोने से कनीनिका की जलन दूर होती है। आंखों के रोगों को ठीक करने के लिए 30 ग्राम त्रिफला चूर्ण को रात के समय में 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर रखें। सुबह इसे कपड़े से छानकर आंखों को धोएं।
· 10 ग्राम त्रिफला, 5-5 ग्राम सेंधानमक और फिटकरी और 100 ग्राम नीम के पत्ते इन सबको लेकर 300 मिलीलीटर पानी में उबालें तथा इसे कपड़े से छानकर आंखों को धोने से आंखों की सूजन ठीक हो जाती है।
2. मोतियाबिंद :
· ठंडे पानी या त्रिफला के काढ़े से आंखों को धोने से मोतियाबिंद दूर होता है।
· त्रिफला चूर्ण एवं यष्टीमूल चूर्ण को 3 से 6 ग्राम शहद या घी के साथ दिन में 2 बार लेने से मोतियाबिंद ठीक हो जाता है।
· मोतियाबिंद को ठीक करने के लिए 6 से 12 ग्राम त्रिफला चूर्ण को 12 से 24 ग्राम घी के साथ दिन में 3 बार लेना चाहिए।
3. दिनौंधी (दिन में दिखाई न देना) :
· त्रिफला के काढे़ में 12 से 24 ग्राम शुद्ध घी मिलाकर इसे 150 मिलीलीटर गुनगुने पानी के साथ दिन में 3 बार लेने से लाभ मिलता है।
· त्रिफले के पानी से आंखों को रोजाना धोने और त्रिफले का चूर्ण घी या शहद के साथ सुबह और शाम 3 से 6 ग्राम खाने से दिनौंधी रोग में लाभ मिलता है।
· दिनौंधी को ठीक करने के लिए रोजाना सुबह और शाम 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण को ताजे पानी के साथ सेवन करें और त्रिफला के पानी से आंखों और सिर को धोयें।
4. रतौंधी (रात में न दिखाई देना) :
त्रिफला के पानी से रोजाना सुबह और शाम आंखों और सिर को अच्छी तरह से धोना चाहिए। इससे रतौंधी रोग ठीक होने लगता है।
5. घाव (दूषित जख्म):
· त्रिफले के पानी से घावों को धोने से घाव ठीक होने लगते हैं।
· त्रिफुला के चूर्ण में मोंगरे का रस मिलाकर बारीक पीस लें और बड़े बेर के बराबर की गोलियां बना लें। 1-1 गोली रोजाना सेवन करने से नासूर (पुराना घाव) ठीक हो जाता है।
· त्रिफला के काढ़े से उपदंश के घावों को धोकर ऊपर से त्रिफला की राख को शहद में मिलाकर लगाने से उपदंश के घाव जल्द भर जाते हैं और ठीक हो जाते है।
· त्रिफला और उड़द इन दोनों को बराबर लेकर कड़ाही में जलाकर राख बना लें और इस राख में शहद मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को उपदंश के घाव पर लगाने से लाभ मिलता है।
· त्रिफला के काढ़े में शहद मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को गर्मी के कारण उत्पन्न होने वाले घावों पर लगाएं। इससे लाभ मिलेगा।
· 3 ग्राम त्रिफला का चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से लाभ होता है तथा उपदंश के घाव ठीक हो जाते हैं।
6. उच्च रक्तचाप (हाईब्लड़ प्रेशर) :-
· 1 चम्मच त्रिफला के चूर्ण को गर्म पानी के साथ रात के समय में सोने से पहले लेने से लाभ उच्च रक्तचाप समान्य हो जाता है।
· 10 ग्राम त्रिफला का चूर्ण पानी में मिलाकर रात को किसी बर्तन में रख दें। सुबह इस मिश्रण को छानकर इसमें थोड़ी-सी मिश्री मिला दें और इसे पी लें। इससे उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर) कम होता है।
7. बालों का झड़ना :
त्रिफला का चूर्ण लगभग 2 से 6 ग्राम तथा लौह की भस्म (राख) 125 मिलीग्राम को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बंद हो जाता है।
8. अरुचि (भोजन की इच्छा न करना) :
अरूचि को दूर करने के लिए त्रिफला, रजादन तथा दाड़िम को मिलाकर सेवन करना चाहिए।
9. कृमि (पेट के कीड़े) :-
त्रिफला, हल्दी और निम्ब को मिलाकर सेवन करने से पेट के कीड़ें मर जाते हैं।
10. कामला (पीलिया) :
· त्रिफला, वासा, गिलोय, कुटकी, नीम की छाल और चिरायता को मिलाकर पीस लें। इस मिश्रण की 20 ग्राम मात्रा को लगभग 160 मिलीलीटर पानी में पका लें। जब पानी चौथाई बच जायें तो इस काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम के समय सेवन करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
· त्रिफला, पलाश तथा कुटज को मिलाकर सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
· पीलिया का उपचार करने करने के लिए 40 मिलीलीटर त्रिफला के काढ़े में 5 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
· त्रिफला का रस एक तिहाई कप इतना ही गन्ने का रस मिलाकर दिन में 3 बार पीने से पीलिया की बीमारी दूर होती है।
· हल्दी, त्रिफला, बायबिडंग, त्रिकुटा और मण्डूर को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें। फिर उस चूर्ण को घी और शहद के साथ मिलाकर खाने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
· आधा चम्मच त्रिफला का चूर्ण, आधा चम्मच गिलोय का रस, आधा चम्मच नीम का रस। इन सबकों मिलाकर शहद के साथ चाटें। लगभग 12 से 15 दिन तक इसका सेवन करने से रोग ठीक हो जाता है।
11. मूत्ररोग :-
· त्रिफला, बांस के पत्ते, मोथा तथा पाठा आदि को पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से तीन-चार ग्राम चूर्ण को शहद तथा घी के साथ सेवन करने से पेशाब का बार-बार आना बंद हो जाता है।
· त्रिफला, सेंधानमक, गोखरू तथा खीरा के बीज को पीसकर चूर्ण बना लें। इसे ठंडे पानी के साथ लेने से पेशाब के रोग ठीक हो जाते हैं।
· 3 से 5 ग्राम त्रिफला का चूर्ण सुबह और शाम गर्म पानी के साथ रोगी को खिलाने या 6 ग्राम जवाखार के साथ ताजे पानी में मिलाकर पिलाने से पेशाब काला तथा हरा आना बंद हो जाता है।
· 40 मिलीलीटर त्रिफला का काढ़ा सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से पेशाब के साथ रक्त (खून) का आना बंद हो जाता है।
· लगभग 2 चम्मच त्रिफला के चूर्ण में थोड़ा सा सेंधानमक मिलाकर प्रयोग करने से पेशाब अधिक आना कम हो जाता है।
12. प्रमेह (वीर्य विकार) :
त्रिफला, देवदारू, दारूहल्दी तथा नागरमोथा को समान भाग में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े का सुबह और शाम सेवन करने से प्रमेह रोग ठीक हो जाता है।
13. रक्त पित्त (खून पित्त) :
हरड़, बहेड़ा, आंवला तथा अमलतास के 20 मिलीलीटर काढ़े में शहद और खांड को मिलाकर पीने से रक्त पित्त, जलन तथा दर्द दूर होता है।
14. टायफाइड :
· त्रिफला का काढ़ा लगभग 10-20 मिलीलीटर बुखार आने से 1 घण्टे पहले पीने टायफाइड रोग में लाभ मिलता है।
· लगभग 20 मिलीलीटर त्रिफला के काढ़े या गिलोय के रस को पीने से टायफाइड ठीक होने लगता है।
15. वजन बढ़ाने के लिए :
1 चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात में लगभग 200 ग्राम पानी में मिलाकर रख दें। सुबह के समय इस पानी को उबालें। जब पानी आधा बच जाए तो इसको छानकर रख लें। इसके बाद 2 चम्मच शहद मिलाकर गुनगुना पीने से कुछ ही दिनों में ही कई किलो वजन में बढ़ोत्तरी होती हैं।
16. दांतों का दर्द :
· दांत में दर्द रहने पर त्रिफला की जड़ की छाल चबाने से दर्द में आराम मिलता है।
· तूतिया, पांचों नमक, पतंगा, माजूफल, त्रिफला तथा त्रिकुटा इन सबको बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर मंजन बना लें। इस मंजन को प्रतिदिन दांतों पर मलने से दातों का हिलना, दांतों का दर्द तथा दांतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं और दांतों का दर्द ठीक हो जाता है। इससे दांतों की जड़ें मजबूत हो जाती है।
· त्रिफला और गुग्गुल 4 से 8 ग्राम की मात्रा में लेकर गर्म जल के साथ रोजाना 2 बार सेवन करने से दांतों के रोग तथा दांत का दर्द ठीक हो जाता है।
17. मलेरिया का ज्वर :
· मलेरिया ज्वर को ठीक करने के लिए त्रिफला और पीपल को बराबर भाग में लेकर चूर्ण बना लें, इसमें शहद मिलाकर चाटने से लाभ मिलता है।
· त्रिफला 3 ग्राम, नागरमोथा 3 ग्राम, निशोथ 3 ग्राम, त्रिकुटा 3 ग्राम, इन्द्रजौ 3 ग्राम, कुटकी 3 ग्राम, पटोल के पत्ते 3 ग्राम, चित्रक 3 ग्राम और अमलतास को 3 ग्राम की मात्रा में कूटकर चूर्ण बना लें। जब काढ़ा ठंडा हो जाये तब शहद मिलाकर रोगी को पिलाए इससे मलेरिया बुखार ठीक हो जाता है।
18. अंजनहारी या गुहेरी :
· गुहेरी को ठीक करने के लिए 5 ग्राम त्रिफला का चूर्ण और 2 ग्राम मुलहठी को सुबह और शाम पानी के साथ सेवन करना चाहिए।
· त्रिफला को रात के समय पानी में डालकर रख दें सुबह उठकर उस पानी को कपड़े मे छानकर आंखों को धोने से अंजनहारी ठीक हो जाती है।
· रोजाना सुबह और शाम 3-3 ग्राम त्रिफला चूर्ण को हल्के गर्म पानी के साथ सेवन करने से अंजनहारी ठीक होने लगती है।
19. चतुर्थक ज्वर:
· चतुर्थक ज्वर को ठीक करने के लिए त्रिफला के काढ़े में बराबर मात्रा में दूध या गुड़ मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम को सेवन करने से लाभ मिलता है।
· त्रिफला, गुडूची तना तथा वासा के पत्ते का काढ़ा बनाकर 14.28 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 3 बार लेने से चतुर्थक ज्वर ठीक हो जाता है।
20. एलर्जिक बुखार :
3 से 6 ग्राम त्रिफला चूर्ण सुबह और शाम सेवन करने से एलर्जिक ज्वर ठीक हो जाता है। अधिक लाभ पाने के लिए इसके साथ शहद का उपयोग कर सकते हैं।
21. फेफड़ों में पानी भर जाना :
1 ग्राम त्रिफला का चूर्ण और 1 ग्राम शिलाजीत को 7 से 14 मिलीमीटर गाय के मूत्र (पेशाब) में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
22. जीभ की प्रदाह और सूजन :
त्रिफला को जल में घोलकर गरारे करने से जीभ की जलन और सूजन दूर हो जाती है।
23. जीभ और त्वचा की सुन्नता :-
त्रिफला के जड़ की छाल को चबायें। इससे लकवा (पक्षाघात) के कारण जीभ में उत्पन्न सुन्नता ठीक हो जाती है।
24. रोशनी डर लगना :
· 6 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को मिश्री के साथ रोजाना रात को खाकर ऊपर से त्रिफला का काढ़ा पीने से रोशनी से होने वाला डर दूर हो जाता है।
· त्रिफला के काढ़े से आंखों को रोजाना सुबह और शाम साफ करने से आंखों के रोग में लाभ मिलता है और तेज रोशनी के कारण उत्पन्न डर दूर हो जाता है।
25. सब्ज मोतियाबिंद :
3 से 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण सुबह और शाम घी और शहद के साथ मिलाकर सब्ज मोतियाबिंद ठीक हो जाता है।
26. कब्ज :
· कब्ज को दूर करने के लिए त्रिफला का चूर्ण 5 ग्राम रात में हल्के गर्म दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है।
· 1 चम्मच त्रिफला के चूर्ण को गर्म पानी के साथ सोने से पहले सेवन करने से कब्ज की समस्या दूर होती है।
· त्रिफला का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में लेकर हल्का गर्म पानी के साथ रात को सोते समय लेने से कब्ज दूर हो जाती है।
· त्रिफला का चूर्ण 6 ग्राम शहद में मिलाकर रात में खा लें, फिर ऊपर से गर्म दूध पीएं। ऐसा कुछ दिनों तक करने से कब्ज की समस्या खत्म हो जाती है।
· त्रिफला 25 ग्राम, सनाय 25 ग्राम, काली हरड़ 25 ग्राम, गुलाब के फूल 25 ग्राम, बादाम की गिरी 25 ग्राम, बीज रहित मुनक्का 25 ग्राम, कालादाना 25 ग्राम और वनफ्शा 25 ग्राम इस सब को पीसकर चूर्ण बना लें। इस मिश्रण को गर्म दूध के साथ लेने से कब्ज समाप्त हो जाती है।
· 50 ग्राम त्रिफला, 50 ग्राम सोंफ, 50 ग्राम बादाम की गिरी, 10 ग्राम सोंठ और 30 ग्राम मिश्री को अलग-अलग जगह कूट लें। इन सबकों मिलाकर इसमें से 6 ग्राम रात को सोने से पहले सेवन करें।
· त्रिफला गुग्गुल की दो-दो गोलियां दिन में 3 बार (सुबह, दोपहर और शाम) गर्म पानी के साथ लेने से पुरानी कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
27. मुंह के छाले :
· बहेड़ा, हरड़, आंवला, दारुहल्दी और सौंफ 15-15 ग्राम की मात्रा में लेकर गर्म पानी में उबाल लें। इसके बाद इसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
· पेट में कब्ज होने पर त्रिफला का चूर्ण गर्म दूध या गर्म पानी के साथ प्रतिदिन रात को लगातार 3 से 4 दिन सेवन करने से मुंह के छाले व दाने खत्म हो जाते हैं।
28. मुंह की दुर्गन्ध:
· तिरफल की जड़ की छाल को मुंह में रखकर दिन में 2 से 3 बार चबाने से मुंह की दुर्गंध खत्म हो जाती है और मुंह सुगंधित रहता है।
· त्रिफला का जूस 20 से 40 मिलीलीटर रोजाना 4 बार पीने से मुंह की दुर्गंध मिट जाती है।
· तिरफल की जड़ की छाल मुंह में रखकर चबाते रहने से मुंह की दुर्गंधता खत्म होकर मुंह सुगंधित रहता है।
29. पेट की गैस बनना :
त्रिफला और राई को पीसकर चूर्ण बना लें। इसे थोड़ी-सी मात्रा में गर्म पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है।
30. गुल्म (पेट में वायु का गोला बनना) :
गर्मी के कारण पेट में वायु का गोला बनने पर उपचार करने के लिए द्राक्षा (मुनक्का) और हरड़ का रस 1 से 2 चम्मच गुड़ की चासनी में मिलाकर पीना चाहिए या त्रिफला चूर्ण लगभग 4 से 5 ग्राम खांड में मिलाकर दिन में 3 बार लेने से पेट में वायु का गोला बनना बंद हो जाता है।
31. पेट में दर्द :
· त्रिफला का चूर्ण 3 ग्राम तथा 3 ग्राम मिश्री को मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
· त्रिफला को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इस चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करें। इससे पेट का दर्द ठीक हो जाएगा।
32. पेट के सभी प्रकार के रोग :
200 ग्राम त्रिफला चूर्ण में लगभग 120 ग्राम खांड (कच्ची चीनी) मिला लें। इसमें से 5 ग्राम की मात्रा दिन में सुबह और शाम पानी के साथ लेने से पेट के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
33. पेट फूलना –
त्रिफला 10 ग्राम, 20 ग्राम सनाय और 50 ग्राम चूक को कूट छानकर नींबू के रस में मिलाकर छोटी-छोटी एक समान भाग में गोलियां बनाकर छांया में सुखा लें। रात को सोते समय 1 से 2 गोली लेने से पेट हल्का हो जाता है।
34. पेट निकलना :
ऐसे रोगी जिनका पेट बाहर की ओर निकल गया हो उन्हें 100 मिलीलीटर त्रिफला के रस में 300 मिलीलीटर पानी में मिलाकर खाना खाने के बाद सेवन करना चाहिए। इससे यह रोग ठीक हो जाता है।
35. हिचकी :
3 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को गोमूत्र के साथ सेवन करने से हिचकी आना बंद हो जाता है।
36. दस्त :
त्रिफला को पीसकर चूर्ण बनाकर आधा-आधा चम्मच की मात्रा में शहद के साथ सुबह और शाम लेने से दस्त आना बंद हो जाता है।
37. बवासीर (अर्श) :
.त्रिफला का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में रोजाना रात को हल्के गर्म दूध में मिलाकर पीने से कब्ज और बवासीर नष्ट हो जाती है।
38. भगन्दर :
भगन्दर को ठीक करने के लिए त्रिफला को पानी में उबालकर छान लें और इस पानी से भगन्दर को धोने से इसके जीवाणु नष्ट हो जाते है और लाभ मिलता है।
39. प्रदर रोग :
प्रदर रोग में उपचार करने के लिए त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आंवला,), नागरमोथा, मुलहठी, और लोध्र के चूर्ण को शहद में मिलाकर सेवन करें।
40. अम्लपित्त (एसिडिटीज) :-
· त्रिफला का चूर्ण आधा चम्मच दिन में 2-3 बार पानी के साथ लेने से अम्लपित्त दूर होता है।
· त्रिफला (हरड़, बडेड़ा और आंवला), जीरा, पीपल, काली मिर्च को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। फिर इस चूर्ण में 1 से आधा चम्मच की मात्रा में शहद के साथ सुबह और शाम चाटने से लाभ मिलता है।
· बच्चों के पेट में होने वाली अम्लपित्त का उपचार करने के लिए त्रिफला के चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ बच्चे को सेवन कराएं।
· त्रिफला, कुटकी और परवल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर, छानकर थोड़ी-सी मात्रा में मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है।
41. पथरी :
पाषण भेद, साठी की जड़ व गोखरु 5-5 ग्राम, त्रिफला 14 ग्राम, तथा अमलतास का गूदा 10 ग्राम, इन सबको 500 मिलीलीटर पानी डालकर उबालें। जब 100 मिलीलीटर पानी शेष रहे तब इसे छानकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें। इसे पथरी घुलकर निकल जाती है।
42. गर्भाशय की शुद्धता :
त्रिफला के काढ़े को कपड़े में छानकर इससे योनि में पिचकारी मारें। इससे गर्भाशय का मल निकलकर शुद्ध हो जाता है।
43. यकृत (जिगर) का बढ़ना :
· 20 ग्राम त्रिफला को 120 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब चौथाई पानी रह जाय तो इसे उतारकर छान लें। इसके ठंडा हो जाने पर इसमें 6 ग्राम शहद मिलाकर पीने से यकृत बढ़ने की शिकायत दूर हो जाती है।
· यकृत बढ़ने पर उपचार करने के लिए 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण एक कप पानी के साथ पकाएं। जब चौथाई कप पानी शेष रह जायें तो उसे उतारकर छान लें। ठंडा हो जाने पर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें। इससे लाभ मिलता है।
44. बच्चों के यकृत दोष :
बच्चों के यकृत दोष को दूर करने के लिए त्रिफला के हल्के गर्म काढ़े में शहद मिलाकर रोजाना सुबह और शाम 10 से 20 मिलीलीटर तक बच्चे को सेवन कराएं।
45. बौनापन :
कद लम्बा करने के लिए 250 ग्राम त्रिफला पीसकर चूर्ण बना लें और इसे छानकर रख लें, इसमें 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम लेने से लाभ मिलता है।
46. बच्चों के मधुमेह रोग :
बच्चों के मधुमेह रोग को ठीक करने के लिए त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आंवला,) का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में लेकर इसमें शहद मिलाकर बच्चे को चटाएं।
47. मधुमेह :
मधुमेह का उपचार करने के लिए त्रिफला का काढ़ा प्रतिदिन पीना चाहिए। इससे मधुमेह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
48. शीतपित्त :
· त्रिफला पिसा 5 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम लेने से शीतपित्त में आराम मिलता है।
· शीतपित्त को दूर करने के लिए 120 ग्राम त्रिफला को कूटकर छान लें। इसमें से 6 ग्राम पानी के साथ रात के समय में सोते समय लें। इससे लाभ मिलेगा।
· 6 ग्राम त्रिफला को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर रात को रख दें। सुबह इसे मसलकर छान लें, इसके बाद इसमें शहद मिलाकर पी लें। इससे शीतपित्त रोग ठीक हो जाता है।
49. मोटापा :
· त्रिफला का चूर्ण लगभग 12 से 14 ग्राम की मात्रा में सोने से पहले रात को हल्के गर्म पानी में डालकर रख दें। सुबह इस पानी को छानकर इसमें शहद को मिलाकर सेवन करें। ऐसा कुछ दिनों तक लगातार लेने से मोटापा कम होने लगता है।
· त्रिफला, चित्रक, त्रिकुटा, नागरमोथा तथा वायविंडग को मिलाकर काढ़ा बना लें और इसमें गुगुल मिलाकर सेवन करें। इसे कुछ दिनों तक लेने से मोटापा कम होने लगता है।
· मोटापा कम करने के लिए त्रिफला का चूर्ण शहद के साथ 10 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार लेने से लाभ मिलता है।
· 2 चम्मच त्रिफला को 1 गिलास पानी में उबालकर इच्छानुसार मिश्री मिला लें और इसका सेवन करें। इसे रोज लेने से मोटापा दूर होता है।
· त्रिफला का चूर्ण और गिलोय का चूर्ण 1-1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता है।
· त्रिफला और गिलोय को मिलाकर काढ़ा बनाकर शहद के साथ सेवन करने से मोटापा कम होने लगता है।
50. जुकाम :
जुकाम को ठीक करने के लिए 3 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को शहद मिलाकर चाटने से खांसी और जुकाम भी ठीक हो जाता है।
51. स्तनों के दूध का विकार :
त्रिफला, चिरायता पंचांग (जड़, तना, पत्ता, फल और फूल), कटुकी प्रकन्द, मुस्तकमूल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें, फिर इसी काढ़े को एक दिन में 14 मिली लीटर से लेकर 28 मिली लीटर की मात्रा में सुबह और शाम पीने से स्तनों के दूध के विकारों में लाभ मिलता हैं।
52. पित्तशूल (पित्त के कारण उत्पन्न दर्द) :
· त्रिफला और अमलतास 20 ग्राम को अच्छी तरह से पकाकर काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़ें में देशी घी और चीनी डालकर पीने से पित्तशूल यानी पित्त के कारण होने वाले दर्द में लाभ मिलता है।
· त्रिफला को पीसकर बारीक चूर्ण में मिश्री का चूर्ण मिलाकर लेने से हर प्रकार के दर्द में लाभ होता है तथा इससे पित्तशूल में आराम मिलता है।
53. अरूंषिका (वराही) : लगभग 2.5 ग्राम त्रिफला के चूर्ण और गुग्गल की 1 गोली को पानी के साथ लेने से अरुंषिका रोग या छोटी-छोटी फुंसियां ठीक हो जाती है।
54. स्त्रियों के सभी प्रकार के रोग :
त्रिफला, त्रिसुगन्धि 30 ग्राम, त्रिकटु, भुनी हुई बच और हींग, सज्जी, पाढ़, ज्वाखार, दारुहल्दी, चव्य, भूनी हुई हल्दी, कुटकी, कूडे की छाल, इन्द्र जौ, 5 प्रकार के नमक, बेलगिरी, पीपला मूल, अजमोद 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से मिश्रण को 5-5 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ सेवन करने से स्त्रियों को होने वाले अनेक रोग जैंसे- बवासीर, दमा, बेचैनी, मसान सूखिया, दिल का दर्द, भगन्दर, पसली का दर्द, पेट की बीमारी, हिचकी, गुल्म, खांसी, पीलिया, प्रमेह, आमवात, बुखार और पेचिश ठीक हो जाते हैं।
55. छोटी उम्र में रक्तस्राव :
छोटी उम्र में रक्तस्राव होने पर उपचार करने के लिए 30 ग्राम त्रिफला को मोटा-मोटा कूटकर 500 मिलीलीटर पानी में डालकर पकाएं, जब यह लगभग 250 मिलीलीटर बच जाए तो इस पानी को ठंडा करके इससे योनि को धो लें। इसका प्रयोग च्यवनप्राश खाने के बाद ही करना चाहिए।
56. गठिया (जोड़ों के दर्द) :
जोड़ों के दर्द को दूर करने के लिए गिलोए का रस और त्रिफला का रस आधे कप पानी में मिलाकर सुबह
-शाम भोजन के बाद पीने से लाभ मिलता है।
57. योनि की जलन और खुजली :
· लगभग 2.5 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को शुद्ध गंधक मिलाकर पानी के साथ पीने से योनि की जलन तथा खुजली खत्म हो जाती है।
· लगभग 20 से 25 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को 500 मिलीलीटर पानी में डालकर पका लें, फिर इस पानी में साफ कपड़ा भिगोकर इससे योनि को साफ करने से योनि की खुजली व जलन दूर हो जाती है।
58. एक्जिमा के रोग में :
· त्रिफला, बच, कुटकी, दारु, मजीठ, हल्दी, नींबू की छाल (खाल) तथा गिलोय इन सबको बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इसे पानी में डालकर उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को दिन में तीन से चार बार पीने से एक्जिमा कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।
· त्रिफला, नीम की छाल (खाल) और परवल के पत्तों को पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े से एक्जिमा के भाग को साफ करने से एक्जिमा जल्दी ठीक हो जाता है।
59. दिमाग के कीड़े :
दिमाग के कीड़े को खत्म करने के लिए लगभग 200 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को 100 ग्राम खांड (कच्ची चीनी) में मिला दें और इसमें से 10 ग्राम चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से दिमाग के कीड़े नष्ट हो जाते है तथा इसके साथ-साथ दिल भी मजबूत होता है।
60. फोड़ा (सिर का फोड़ा) :
फोड़े-फुंसियों को ठीक करने के लिए दूध या पानी के साथ त्रिफला के चूर्ण रात को सोते समय सेवन करने से लाभ मिलता है। खाने में नमक का कम इस्तेमाल और केवल दूध या रोटी या दूध से बने पदार्थों का सेवन करने से लम्बे समय तक फोड़े फुंसियां नहीं निकलते हैं।
61. खाज-खुजली :
लगभग 50 से 100 मिलीलीटर त्रिफला का रस रोजाना सुबह-शाम पीने से खून साफ हो जाता है और खाज-खुजली के साथ त्वचा के दूसरे रोग भी दूर हो जाते हैं।
62. उरूस्तम्भ (जांघ का सुन्न होना) –
मोथा, छोटी पीपल, त्रिफला, कुटकी और चव्य को एक समान भाग में लेकर अच्छी तरह से पीसकर छानकर बारीक चूर्ण बना लें। 6 ग्राम चूर्ण शहद के साथ चाटने से जांघ का सुन्नापन दूर होता है।
63. इच्छा-अनिच्छा :
कुछ भी खाने की इच्छा न होना, कब्ज रहना, शरीर में आलस्य और थकावट हो तो 6 ग्राम त्रिफला और 3 ग्राम ईसबगोल की भूंसी रात में पानी के साथ लेने से कब्ज दूर हो जाती है और शरीर स्वस्थ रहता है।
64. खसरा :
त्रिफला, निम्ब पत्र, पटोल का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल), गुडूचीकाण्ड तथा वासा पत्र के थोड़े से भाग का काढ़ा बनाकर इसमें 5 से 15 मिलीलीटर खदिर मिला लें। इसे दिन में 2 बार पीने से खसरा ठीक हो जाता है।
65. बच्चों का रोना :
त्रिफला और पीपल के चूर्ण को घी और शहद में मिलाकर बच्चों को चटाने से बच्चे रोना बंद कर देते हैं और उन्हे डर लगना भी बंद हो जाता है। ध्यान रहें कि घी और शहद बराबर मात्रा में नहीं होने चाहिए।
66. साइटिका (गृध्रसी) :
साइटिका के रोगी को त्रिफला के काढ़ा में 10 से 30 मिलीलीटर एरण्डी के तेल मिलाकर पीने से साइटिका रोग दूर होता है।
67. खून की कमी (एनिमिया) :
धुला हुआ खवस अलहरीद 20 ग्राम और 60 ग्राम त्रिफला को कूट छानकर दोनों को लोहे की कढ़ाई में फैलाकर इसके ऊपर लगभग 300 ग्राम दही डालकर 7 दिन तक सूखायें और दिन में 3 से 4 बार अच्छी तरह इसे उलटते-पलटते रहें। सूख जाने के बाद कूट-छान कर इसमें 6-6 ग्राम पीपल, कालीमर्च तथा सोंठ पीसकर मिला दें। इसके बाद इसमें से 3 ग्राम मिश्रण प्रतिदिन सुबह-शाम 1 गिलास छाछ (मट्ठा) के साथ खाली पेट सेवन करें। इसका सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है।
68. चर्मरोग :
· रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला का चूर्ण पानी के साथ लेने से खून की खराबी दूर हो जाती है और चर्मरोग भी ठीक हो जाते हैं।
· लगभग 50 से 100 मिलीलीटर त्रिफला के रस को रोजाना सुबह-शाम पीने से खून साफ हो जाता है और त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
69. सिरदर्द :
· मिश्री और त्रिफला को घी में मिलाकर खाने से सिर के सभी रोग खत्म हो जाते हैं और सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
· बराबर मात्रा में त्रिफला का चूर्ण, धनिया, सौंठ और वायविडंग को लेकर एक कप पानी में उबालें। जब यह पानी आधा कप रह जाये तो उसे उतारकर काढ़े की तरह सुबह और शाम पीने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
70. बालरोग :
बालरोग को ठीक करने के लिए त्रिफला का काढ़ा बनाकर दिन में 1 से 2 बार सेवन करने से लाभ मलता है।
71. ज्यादा पसीना आना :
त्रिफला का रस या चिरायता का रस पानी में मिलाकर दिन में 3 बार पीने से पसीना आना कम हो जाता है।
72. गले की सूजन :
गले की सूजन को ठीक करने के लिए चमेली के पत्ते, गिलोय, जवासा, दाख, त्रिफला और दारुहल्दी को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से गरारे करने पर गले के घाव और छाले दूर होते हैं और सूजन भी ठीक हो जाती है।
इस लेख का मकसद आप सभी का ज्ञानवर्धन करना है .इसमे किसी भी इलाज या उपाय को आप किसी चिकित्षक या वैध की सलाह और देखरेख के बाद ही करे .
धन्यवाद
हेमंत कुमार शर्मा
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